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भँवरा / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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गुन-गुन करता भँवरा आया ।
कलियों-फूलों पर मंडराया ।।

यह गुंजन करता उपवन में ।
गीत सुनाता है गुंजन में ।।

कितना काला इसका तन है ।
किन्तु बड़ा ही उजला मन है ।

जामुन जैसी शोभा न्यारी ।
ख़ुशबू इसको लगती प्यारी ।।

यह फूलों का रस पीता है ।
मीठा रस पीकर जीता है ।।