भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वप्न में राधा पडी दिखाई / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:15, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडे…)
स्वप्न में राधा पडी दिखाई
पुलक उठ मनमोहन जैसे फिर खोयी निधि पायी
सम्मुख वही गौर मुख सुन्दर
कानों में था वही मधुर स्वर
वही गंध अलकों की उड़कर
साँसों में लहरायी
राधा ने झुक चरण छू लिया
फिर उनपर सिन्दूर धर दिया
मुड़कर अश्रु बहाती दुखिया
गयी जिधर से आयी
हरि करतल पर चिबुक टेककर
लगे सिसकने स्वप्न देखकर
तारे डूबे एक-एककर
नभ में लाली छायी
स्वप्न में राधा पडी दिखाई
पुलक उठ मनमोहन जैसे फिर खोयी निधि पायी