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'मन के तार तुझी से बाँधे / गुलाब खंडेलवाल
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'मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!'
 
'साज भिन्न हो समय-समय का
राग न छूट सका नव वय का 
सुर अब भी है वही हृदय का 
लाख जोग-जप साधे
 
'वेणु बजाता वंशीवट  पर 
फिरता हूँ नित यमुना-तट पर
तुझे देखता हूँ पनघट पर
नयन खोलकर आधे
 
'फिर-फिर वृन्दावन में आ के 
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये हमारे प्रेम-कथा के 
पृष्ठ रहे जो सादे'
'मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!'
	
	