भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हत्यारे / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 4 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} <poem> हत्यारे हत्यारे घूम रहे हैं खुल्लम-खुल्ला, बड़ी शा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हत्यारे


हत्यारे घूम रहे हैं
खुल्लम-खुल्ला, बड़ी शान से

अमूर्त हो रहे हैं अपराध्
और हत्यारे बरी
दुनिया का कोई कानून
उन्हें हत्यारा नहीं मानता

हत्यारों को पहनाई जा रही हैं
रंग-बिरंगी पगड़ियां
उनकी मनुहार हो रही है
जय-जयकार गूंज रही है
समूचे ब्रह्मांड में

मैं हैरान हूं
दुनिया में अरबों बच्चे
गूंगे क्यों हो रहे हैं?
1999