भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्कूल / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:39, 4 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} <poem> स्कूल घंटी बजती है बच्चे आते हैं नींद में भरे-भरे कित…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्कूल

घंटी बजती है
बच्चे आते हैं
नींद में भरे-भरे
किताबों से लदे-लदे

घंटी बजती है
बच्चे जाते हैं
सहमे-सहमे, डरे-डरे
थके-थके और मरे-मरे

स्कूल में तितली नहीं दिखती
चिड़िया नहीं गाती
पानी कल-कल नहीं करता
पेड़ों की छांव रूठ जाती है
बच्चों की दुनिया टूट जाती है
1987