भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लहू न हो तो क़लम / वसीम बरेलवी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 1 अप्रैल 2007 का अवतरण (New page: रचनाकार: वसीम बरेलवी Category:कविताएँ Category:गज़ल Category:वसीम बरेलवी ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: वसीम बरेलवी

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

लहू न हो तो कलाम तरजुमाँ नहीं होता
हमारे दौर में आँसू ज़ुबाँ नहीं होता

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तनहाई
के मुझ से आज कोई बदगुमाँ नहीं होता

मैं उस को भूल गया हूँ ये कौन मानेगा
किसी चराग़ के बस में धुआँ नहीं होता

'वसीम' सदियों की आँखों से देखिये मुझ को
वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता