भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अजब जलवे दिखाए जा रहे हैं / अज़ीज़ आज़ाद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:42, 6 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजब जलवे दिखाए जा रहे हैं
ख़ुदी को हम भुलाए जा रहे हैं

शराफ़त कौन-सी चिड़िया है आख़िर
फ़कत किस्से सुनाए जा रहे हैं

बुजुर्गों को छुपाकर अब घरों में
सजे कमरे दिखाए जा रहे हैं

खुद अपने हाथ से इज़्ज़त गँवा कर
अब आँसू बहाए जा रहे हैं

हमें जो पेड़ साया दे रहे थे
उन्हीं के क़द घटाए जा रहे हैं

सुख़नवर अब कहाँ हैं महफ़िलों में
लतीफ़े ही सुनाए जा रहे हैं

‘अजीज’अब मज़हबों का नाम लेकर
लहू अपना बहाए जा रहे हैं