भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कालीबंगा: कुछ चित्र-15 / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:58, 11 जून 2010 का अवतरण ()

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब थे
उस घड़ी
जब
बरसी थी
आकाश से
अथाह मिट्टी

सब हो गए जड़
मिल गए
बनते थेहड़ में

आज फ़िर
अपने ही वशंजो को
खोद निकाला है
कस्सी
खुरपी
बट्ठल-तगारी ने !
 

राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा