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वो मुहब्बत गई वो फ़साने गए / अज़ीज़ आज़ाद
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वो मुहब्बत गई वो फ़साने गए
जो ख़ज़ाने थे अपने ख़ज़ाने गए
चाहतों का वो दिलकश ज़माना गया
सारे मौसम थे कितने सुहाने गए
रेत के वो घरौंदे कहीं गुम हुए
अपने बचपन के सारे ठिकाने गए
वो गुलेलें तो फिर भी बना लें मगर
अब वो नज़रें गईं वो निशाने गए
अपने नामों के सारे शजर कट गए
वो परिन्दे गए आशियाने गए
ज़िद में सूरज को तकने की वो ज़ुर्रतें
यार ‘आज़ाद’ अब वो ज़माने गए