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चौपाल

Kavita Kosh से
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इस पन्ने के माध्यम से आप कविता कोश से संबंधित किसी भी बात पर सभी के साथ वार्ता कर सकते हैं।
कृपया इस पन्ने पर से कुछ भी मिटायें नहीं। आप जो भी बात जोड़ना चाहते हैं उसे नीचे दिये गये उचित विषय के सैक्शन में जोड़ दें। अपनी बात यहाँ जोडने के लिये इस पन्ने के ऊपर दिये गये "Edit" लिंक पर क्लिक करें


कविता कोश का नया लोगो

कविता कोश का वर्तमान लोगो बहुत जल्दी में केवल शुरुआत में काम चलाने के लिये पूर्णिमा वर्मन जी द्वारा बनाया गया था। अब चूंकि कविता कोश एक सुस्थापित और लोकप्रिय स्रोत बन चुका है तो समय आ गया है कि कोश के लिये सोच समझ कर एक नया, बेहतर और अर्थपूर्ण लोगो बनाया जाए।

जैसा कि आप जानते हैं कि कविता कोश हिन्दी काव्य का एक विशाल और (विकिपीडिया की तरह) खुला कोश है। आप सभी से निवेदन है कि आप इस बारे में अपने विचार प्रकट करें कि कविता कोश का नया लोगो कैसा होना चाहिये -उसका आकार क्या हो, रंग क्या हो, उसमें क्या लिखा जाए, लोगो में यदि कोई डिजाइन प्रयोग किया जाए तो वो क्या हो।

आकार: लोगो वृत्ताकार हो या चौकोर हो या किसी और आकार का हो?

रंग: कोई विशेष रंग जो कविता कोश जैसे स्रोत के लोगो के लिये उपयुक्त हो?

शब्द: लोगो में क्या लिखा जाए? लोगो में “कविता कोश” लिखना तो तार्किक लगता ही है -लेकिन इसके अलावा कुछ और?

डिज़ाइन: कविता, हिन्दी, कोश, खुलापन… इन सभी शब्दों के आधार पर किस डिज़ाइन या चित्र को लोगो का हिस्सा बनाना चाहिये?

यदि आप स्वयं ग्राफ़िक डिजाइनर हैं तो आप अपनी कल्पना से एक लोगो बना कर कविता कोश की चौपाल में सभी लोगो के विचार हेतु पोस्ट कर सकते हैं। आपके प्रयास और योगदान को कोश में उचित रूप से सूचिबद्ध किया जाएगा।

लेकिन यदि आप ग्राफ़िक्स डिज़ाइनर नहीं भी हैं तो भी डिज़ाइनर्स की मदद के लिये लोगो के बारे में केवल आपके विचार ही प्रकट करें तो यह बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा।

अपने विचार नीचे जोडिये।

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मेरे विचार में लोगो को वृत्ताकार होना चाहिये, उसमें "कविता कोश" लिखा जाना चाहिये। बरगद का एक वृक्ष या पंख वाली एक कलम भी डिजाइन का हिस्सा हो सकती है। लोगो का background रंग सफ़ेद होना चाहिये। --Lalit Kumar १३:२४, २८ अप्रैल २००७ (UTC)


त्रिलोचन शास्त्री

प्रिय ललित जी, मैं हेमेन्द्र जी की बात से शत-प्रतिशत सहमत हूं कि त्रिलोचन जी का नाम "कविता कोश" में केवल "त्रिलोचन" लिखा जाना चाहिये क्योंकि उन्होंने कभी अपने नाम के साथ "शास्त्री" नहीं लगाया । यह एक उपाधि है । त्रिलोचन जी ने हमेशा "त्रिलोचन" के ही नाम से कविता लिखी है। Anil janvijay

आदरणीय अनिल जी, मार्गदर्शन के लिये आपका और हेमेन्द्र जी का धन्यवाद। कविता कोश में त्रिलोचन शास्त्री जी का नाम अब केवल "त्रिलोचन" ही लिखा जाएगा। --Lalit Kumar ०८:१२, २१ मई २००७ (UTC)

प्रिय ललित जी, महादेवी जी क पन्ना मैंने देख लिया है । हम नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर, केदार, अशोक वाजपेयी आदि बहुत से कवियों के पन्ने ऎसे ही तैयार कर सकते हैं । मेरे पास कबीर से लेकर आज के एकदम नए कवियों जैसे निर्मला पुतुल, सुंदर चंद ठाकुर, संजय कुंदन, रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति तक ढेरों कवियों के एक हज़ार से ऊपर कविता-संग्रह हैं । कहना चाहिए कि हिन्दी कविता का पूरा इतिहास ही मेरे पास सुरक्षित है । नागार्जुन के कविता-संग्रहों के नाम से आप पन्ने बनाइये, यही अच्छा रहेगा ।

ललित जी, क्या आप कवियों की सूची में कवि शैलेन्द्र और कवि केदारनाथ सिंह का नाम जोड़ सकते हैं । शैलेन्द्र का सिर्फ़ एक ही कविता-संग्रह अब तक छपा है । उसमें से कुछ दुर्लभ कवितायें मेरे पास हैं । मैं चाहता हूं कि कविता-कोश के पाठक भी उनसे रूबरू हों

हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ सादर जनविजय

आदरणीय अनिल जी, शैलेन्द्र और केदार नाथ सिंह के नाम जल्द ही कविता कोश में जोडे जाएँगे। आप विभिन्न कवियों के जिन जिन काव्य संग्रहों से रचनाएँ कोश में जोड सकते हैं -उनके नाम मुझे बता दीजीये -उन सभी संग्रहों के पन्ने कोश में बना लिये जाएँगे। नागार्जुन और त्रिलोचन के जिन संग्रहों से रचनाएँ जोड़ना आपने आरम्भ कर दिया है -उनके पन्ने मैं अभी बना रहा हूँ। यह महादेवी वर्मा जी का जन्मशती वर्ष है। हमें उनके काव्य संग्रहों को कोश तक लाने का विशेष प्रयास करना चाहिये। इसके अलावा क्या आप धर्मवीर भारती की "कनुप्रिया" के सारे सर्गों की सिलसिलेवार सूची उपलब्ध करा सकते हैं? --Lalit Kumar १९:०८, २२ मई २००७ (UTC)

प्रिय ललित जी, "कनुप्रिया" मैं आज सवेरे से ही ढूंढ रहा हूं । मिल ही नहीं रही । जाने कहां रख दी है । अभी तीन-चार महीने पहले ही तो देखी थी । जैसे ही किताब मिल जायेगी, मैं आपको लिखूंगा । सादर, जनविजय

आदरणीय अनिल जी, "केदार नाथ सिंह" लिखा जाना चाहिये या "केदारनाथ सिंह"? दोनो कवियों के नाम सूची में जोड़ दिये गये हैं। इसके अलावा नागार्जुन के काव्य संग्रह "खिचडी़ पल्ल्व देखा हमने" का पन्ना बना दिया गया है। और संग्रहों के नाम आप बता दीजीयेगा। कनुप्रिया के सर्गों की सूची की प्रतीक्षा रहेगी। सादर --Lalit Kumar १९:४३, २२ मई २००७ (UTC)


रचनाएँ जोड़ने के तरीके में बदलाव

कविता कोश में रचनाएँ जोड़ने के तरीके में एक छोटा सा परन्तु बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया है। रचनाएँ मोटे तौर वैसे ही जोड़ी जाएँगी जैसे पहले जोड़ी जाती थी -अब बस आपको रचना जोडते समय सबसे पहली पंक्ति में {{KKGlobal}} लिखना है। और उसके बाद सब वैसे ही जैसे आप अभी तक करते आये हैं।

यदि आप पहले से मौजूद किसी ऐसी रचना में बदलाव कर रहे हैं जिसकी पहली पंक्ति में {{KKGlobal}} नहीं लिखा है -तो भी आप अपना बदलाव करने के साथ-साथ उस रचना की सबसे पहली पंक्ति में {{KKGlobal}} जोड़ दें। कविता कोश में रचनाएँ कैसे जोडी़ जाती हैं इसके बारे में विस्तार से जानने के लिये देखें: कविता कोश में योगदान कैसे करें


काव्य संग्रह के पन्ने

आदरणीय अनिल जी, रचनाएँ जोड़ते समय आप स्वयं भी काव्य संग्रहों के पन्ने बना सकते हैं। उदाहरण के लिये यदि "जलज माथुर" (एक काल्पनिक कवि) के एक काव्य संग्रह "ज़िन्दगी" से आप कुछ कविताएँ कोश में जोड़ने जा रहे हैं -तो जलज माथुर की रचनाओं की सूची के पन्ने पर उन कविताओं के लिंक बनाने की बजाये काव्य संग्रह का एक लिंक बना दीजीये (यानी "ज़िन्दगी / जलज माथुर")। फिर आप इस संग्रह की जिन कविताओं को कोश में जोड़ना चाह रहे हैं -उनके लिंक "ज़िन्दगी / जलज माथुर" नामक पन्ने पर बनाये। काव्य संग्रह की टैम्पलेट KKPustak अगर आप लगा सकते हैं तो ठीक है वरना उसे मेरे लिये छोड़ दीजीये -उसे मैं संभाल लूँगा। आप कोश में बहुत ही सुन्दर और बहुमूल्य योगदान कर रहे हैं! सादर, ललित --Lalit Kumar ११:५२, २३ मई २००७ (UTC)

प्रिय ललित जी, काव्य संग्रह के नाम से पन्ने बनाने का विचार बहुत अच्छा है। इससे शोधार्थियों को सुविधा रहेगी। कुछ पन्ने खुल भी गए हैं, आपकी तत्परता देख कर खुशी होती है। शुभकामनाओं सहित, हेमेन्द्र कुमार राय, 23 मई 2007

प्रिय ललित जी, सबसे पहले तो हिन्दी में जहां लोगिन कीजिए लिखा है वहां कीजिए गलत लिखा है। इसे कृपया ठीक कर दें। 'कीजीये' को 'कीजिये' बना दें। केदारनाथ एक शब्द है। इसे जोड़ दें। 'कनुप्रिया' मिलते ही मैं आपको सूचित करूंगा। मैं कविता-संग्रहों के नाम के आधार पर पन्ने बनाने का प्रयास करूंगा। परन्तु मुझे कम्प्यूटर के प्रयोग का बहुत अभ्यास नहीं है, अत: यदि मैं कोई काम ढंग से नहीं कर पाऊं, तो कृपया नाराज़ न हों । सादर, जनविजय

आदरणीय हेमेन्द्र जी, कोश की प्रगति के लिये आप जैसे योगदानकर्ता ही बधाई के पात्र हैं। आपको काव्य संग्रहों के अलग पन्ने बनाने का विचार अच्छा लगा -इसकी मुझे प्रसन्नता है। सादर -ललित। --Lalit Kumar २२:०३, २३ मई २००७ (UTC)

आदरणीय अनिल जी, आप मेरे नाराज़ होने और आपके क्षमा माँगने जैसी बात करके मुझे अत्यधिक शर्मिन्दा कर रहे हैं। अगर आप यह वाक्य अपने संदेश से हटा देंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। कविता कोश में योगदान करते हुए रोज़ाना लगभग सभी लोग कुछ न कुछ गलतियाँ करते हैं -मेरा कार्यों में से एक उन गलतियों को समय रहते सुधार देना है। यदि मैं ऐसी गलतियाँ ना सुधार पाऊँ -तो क्षमा तो मुझे माँगनी चाहिये। आप जैसे सुधिजनों के आशीर्वाद के बल से ही तो कविता कोश जैसे बडे कार्य सफल होते हैं। आप कृपया यह वाक्य हटा दें। आपके आशीर्वाद की आकांक्षा में -सादर -ललित। --Lalit Kumar २२:०३, २३ मई २००७ (UTC)


प्रकाशित रचना सामने रखकर सम्पादन करें=

रमा द्विवेदी जी से मेरा निवेदन है कि वे सम्पादन करते समय रचना की प्रकाशित प्रति सामने रखकर सम्पादन करें। राम चरित मानस के बालकांड में उन्होने जो सम्पादन किये हैं वे सही नहीं हैं। उन्होंने अपने सम्पादन से सही पाठ को गलत कर दिया है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित राम चरितमानस का पाठ ही सर्वमान्य है। अन्य रचनाओं में भी उन्होने जो सम्पादन किया है उसका प्रकाशित रचना से मिलान कर संतुष्ट हो लें। आशा है रमा जी अन्यथा नहीं लेंगी।
-हेमेन्द्र कुमार राय, 23 मई 2007

मैं हेमेन्द्र जी की बात से सहमत हूँ। गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित रामचरितमानस को ही मानक माना जाता है। गीता प्रेस की वैबसाइट (http://www.gitapress.org/Download_Eng_pdf.htm) पर रामचरितमानस पी.डी.एफ़ रूप में बिना मूल्य के उपलब्ध है। आईये हम सभी इसी प्रकाशन को मानक मान कर कोश में संकलित संस्करण को संपादित करें। --Lalit Kumar १८:५७, २४ मई २००७ (UTC)

हेमेन्द्र जी एवं ललित जी, मै मानती हूं जब मैंने पुस्तक नहीं देखी थी मैंने सिर्फ दो शब्द "श्रीगुर को श्रीगुरू"और"जंगम को संगम" किया था लेकिन जब मैंने पुस्तक में देखा तब मैंने दुबारा उसे ठीक किया था २४-५-०७ को। गीता प्रेस गोरखपुर की ही पुस्तक मेरे पास है और मैं उससे ही देख कर कार्य कर रही हूं अशुद्धियां अनगिनत हैं , कोई भी पंक्तियों के नंबर नहीं प्रयोग किये इससे बहुत कठिनाई हो रही है...जब अशुद्धियां अधिक होती हैं एक बार में ठीक नहीं होती अगर सम्भव तो कोई और भी एक बार देख सकता है वर्ना मैं ही एक बार फिर से देखूंगी। अन्यथा लेने की बात ही नहीं है लेकिन जब भी हम बहुत बड़ा इस तरह का काम देखते हैं तो कुछ कमियां रह जाना स्वाभाविक है ...कोई जानबूझ कर नहीं करता। रह गई अन्य रचनाओं की संपादन की बात तो आप स्वयं बतायें कि कहां गलती हुयी है? मैं सुधारने की कोशिश करूंगी फिर भी आपको लगता है कि मैं सही पाठ को गलत कर रही हूं तो मेरा इस कार्य को छोड़ना ही शायद बेहतर होगा कविता कोश के लिए। मैं किसी की परेशानियां बढ़ाने के लिए कार्य नहीं कर रही । उम्मीद है आप मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे...मेरा एक सुझाव है कि अगर हम इस तरह की कहीं गलती देखें तो स्वयं भी ठीक कर दें, मैंने पहले भी ललित जी से पूछा था अगर कुछ गलती हो गई तब कैसे ठीक होगा......आप लोग बहुत जानकार हैं....जल्दी ही ठीक कर सकते हैं......मेरी जानकारी बहुत कम है.......सादर..... डा. रमा द्विवेदी

रमा जी, कविता कोश में योगदान देने की इच्छा रखना सबसे महत्वपूर्ण है -और इसके बाद महत्वपूर्ण है वास्तव में योगदान देना। योगदान गलत हुआ या सही -इसका इतना महत्व नहीं हैं। कविता कोश तो सारे विश्व का है और सभी लोगो के सहयोग से बना है। लोग एक दूसरे के द्वारा की गयी गलतियाँ सुधार कर कोश को दिन-प्रतिदिन बेहतर बनाते हैं। यह भी सही है कि हर व्यक्ति की जानकारी अपने अपने क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक होती है। आपकी कमप्यूटर से संबंधित जानकारी भले ही कम हो -परन्तु आप हिन्दी और साहित्य के विषय में ज्ञान रखती हैं। आपको रामचरितमानस पर काम करना, मेरे विचार में, नहीं छोड़ना चाहिये। हेमेन्द्र जी और मेरा आशय केवल इतना था कि पुस्तक के अनुसार ही कार्य होना चाहिये -ताकि समता बनी रहे। किस पुस्तक को मानक मान कर रामचरितमानस को संपादित किया जाए ऐसा अब तक किसी ने नहीं सोचा था। अब गीता प्रेस की पुस्तक को मानक मान लिया गया है और आप उसी पुस्तक के अनुसार संपादन कर रही हैं तो कोई समस्या ही नहीं। जैसा पुस्तक में लिखा गया है बिल्कुल वैसा ही हम कोश में लिखेंगे। यदि आपसे या किसी भी और व्यक्ति से कोई गलती होती है तो उस बदलाव को उलटा भी जा सकता है। इसलिये आप गीता प्रेस की पुस्तक के अनुसार कार्य जारी रख सकती हैं। ऐसा करते हुए यदि कोई संदेह या प्रश्न सामने आ खडा हो तो चौपाल पर प्रस्तुत कीजिये और आपको समाधान मिल जाएगा। सभी के योगदान की तरह आपका योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सादर --Lalit Kumar ०५:१८, २५ मई २००७ (UTC)

क्षमा करें!

सबसे पहले मैं आदरणीय रमा जी से क्षमा माँगता हूँ। उन्होने शायद मेरे लेखे को अन्य अर्थ में ले लिया है। मैं समझता हूँ कि कविता कोश में सहयोग करने वाले सभी सदस्य मेरे लिए सम्माननीय, विद्वान और बुद्धीजीवी हैं। यह आम प्रवृत्ति है कि हम शब्दों को उनके मानक रूप में देखते हैं, जबकि कवि प्रायः अपनी रचनाओं में किन्ही विशेष कारणों से शब्दों के स्थानीय रूपों का प्रयोग करते रहे हैं। हमने यदि रचना के मूल पाठ या मूल पाठ के प्रकाशन को नहीं देखा है तो वे शब्द हमे उस स्थान पर गलत लग सकते हैं, जबकि ऐसा होता नहीं है।
मेरा यहाँ लिखने का केवल और केवल यही उद्देश्य था कि सभी सदस्य अपने ज्ञान के आधार पर सम्पादन करने की प्रवृत्ति से बचते हुए रचना के मूल पाठ के आधार पर सम्पादन करने की प्रवृत्ति विकसित करें, जिससे कि रचना और रचनाकार के साथ किसी प्रकार का अन्याय न होने पाये।
गलतियाँ सभी से होती हैं, मुझसे भी हुई होंगी या हो सकती हैं। हमे एक दूसरे की गलतियों पर ध्यान आकृष्ट कराना ही चाहिये तथा इसे एक स्वस्थ परंपरा के रूप में लेना चाहिये।

मैं पुनः रमा जी से क्षमा माँगते हुए आशा करता हूँ कि वे कविता कोश में अपना अमूल्य सहयोग यथावत् जारी रखेंगी।

-- हेमेन्द्र कुमार राय, 25 मई 2007


       क्रिपया क्षमा न मांगे
           हेमेन्द्र जी, हम सब कविताकोश को बेहतर बनाने के लिए  ही कार्य कर रहें हैं उसके रूप को बिगाड़ने के लिए  नहीं......इसलिये हम एक दूसरे से यही अपेक्षा रखते हैं कि हम किसी को हतोत्साहित न करें....कोई इस कार्य में बहुत निपुण हो सकता है  और कोई नहीं...लेकिन अगर कोई कार्य करना चाहता है तो हम उसकी सीखने में मदद करें......इससे कविताकोश  में काम करने वालों का एक समूह तैयार हो जायेगा और कार्य भी जल्द हो जायेगा......कोई कार्य करने के लिए तैयार हो यही बड़ी बात है...क्योंकि हम सभी निस्वार्थ भाव से ही कार्य कर रहे हैं....अनजाने में हुई गलतियों को क्षमा कर देना चाहिए......कोई  जानबूझ कर ऐसा क्यों करेगा? तकनीकी जानकारी मेरी बहुत कम है इसलिये अनजाने गलतियां हो सकती हैं.....हम सब मिलकर काम करें और अगर जाने अनजाने गलती हो जाए तो उसे ठीक कर दें.....बहस में समय बर्बाद न करें..... बस इतना ही....अगर मेरी बात ठीक न लगे तो उसके लिए अग्रिम क्षमा मांगती हूं......सादर..
    डा. रमा द्विवेदी ,       25 मई 2007