भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्यामपट / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:41, 14 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> तीन टाँ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीन टाँग के ब्लैकबोर्ड की,
मूरत कितनी प्यारी है ।
कोकिल जैसे इस स्वरूप की,
सूरत जग से न्यारी है ।

कालचक्र में बदल गया सब,
पर तुम अब भी चमक रहे हो ।
समयक्षितिज पर ध्रुवतारा बन,
नित्य नियम से दमक रहे हो ।

बना हुआ अस्तित्व तुम्हारा,
राम-श्याम बन रमे हुए हो ।
विद्यालय हों या दफ्तर हों,
सभी जगह पर जमे हुए हो ।

रंग-रूप सबने बदला है,
तुम काले हो, वही पुराने ।
जग को पाठ पढ़ानेवाले,
लगते हो जाने पहचाने ।

अपने श्यामल तन पर तुम,
उज्जवल सन्देश दिखाते हो ।
भूले-भटके राही को तुम,
पथ और दिशा बताते हो ।

हिन्दी और विज्ञान-गणित,
या अंग्रेजी के हों अक्षर ।
नन्हें सुमनों को सिखलाते,
ज्ञान तुम्ही हो जी भरकर ।

गुण और ज्ञान बालकों के,
मन में इससे भर जाता ।
श्यामपटल अध्यापकगण को,
सबसे अधिक सुहाता ।