भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आजमाने का हुनर / विजय वाते
Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:05, 18 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / वि…)
जिनको आता है गजल के गुनगुनाने का हुनर
उनसे जा के सीखिए रातें जगाने का हुनर
जिंदगी की जंग को जो जीतना है चाहता
है जरूरी सीख ले वो हार जाने का हुनर
आप आए मुस्कुराए और बस फिर छा गये
आपने सीखा कहाँ ये गुल खिलाने का हुनर
आयेंगे आ जायेंगे वो बस अभी आ जायेंगे
ये तसल्ली है कोई या दिल जलाने का हुनर
यह खुला एलान हैं हम, हो गये हैं आपके
आजमा लें आप अपना, आजमाने का हुनर