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बर्फ के पर्वत पिघलते जाएँगे / विजय वाते
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:40, 19 जून 2010 का अवतरण
बर्फ के परवत पिघलते जाएँगे|
बात कीजे हल निकलते जाएँगे|
धुप के लिक्खे को जल्दी बांचिये,
बारिशों मी हर्फ़ घुलते जाएँगे|
अवसरों में मुश्किलें मत देखिये,
हाथ से अवसर निकलते जाएँगे|
मुश्किलों में देखिए अवसर नए,
रास्ते ख़ुद आप खुलते जाएँगे|
सब हवा पर कान देते है, "विजय",
हम हवा पर आँख रखते जाएँगे|