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कानपूर–5 / वीरेन डंगवाल
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ककड़ी जैसी बांहें तेरी झुलस झूर जाएंगी
पपड़ जाएंगे होंठ गदबदे प्यासे-प्यासे
फिर भी मन में रखा घड़ा ठण्डे-मीठे पानी का
इस भीषण निदाघ में तुझको आप्लावित रक्खेगा
अलबत्ता
लली, घाम में जइये, तौ छतरी लै जइये