भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कानपूर–10 / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:37, 25 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …)
रात है रात बहुत रात बड़ी दूर तलक
सुबह होने में अभी देर हैं माना काफी
पर न ये नींद रहे नींद फकत नींद कहीं
ये बने ख्वाब की तफसील अंधेरों की शिकस्त