भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे उनसे मिलना है / चंद्र कुमार जैन

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 29 अप्रैल 2007 का अवतरण (New page: रचनाकार: चंद्र कुमार जैन Category:कविताएँ Category:चंद्र कुमार जैन ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: चंद्र कुमार जैन

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

मूझे उनसे मिलना है
जो कम से कम यह जानते हैं
कि वे कुछ नहीं जानते !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो अपनी जानकारी को ही
विज्ञान समझते हैं !

और मुझे मिलना है उनसे
जो अपना घर जलाकर
औरों की दुनिया रौशन करते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो दूसरों के अंधेरे में
अपनी रोशनी आबाद करते हैं !

मुझे उनसे मिलना है
जो अपने घरों का कचरा
औरों पर नहीं फेंकते !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो दूसरों का आंचल देख
खुद को बेदाग समझते हैं !

मुझे उनसे मिलना है
जो दूसरों की आग पर
अपनी रोटी नहीं सेंकते !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो अपने चूल्हे के धुऍ से
दूसरों की दृष्टि छीनते हैं !

मुझे उनसे मिलना है
जो कुछ कहना
और कुछ करना भी जानते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो बिना चले
बस सिर हिलाते हैं !

मुझे उनसे मिलना है
जो अपने होने पर
वि वास रखते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो केवल कुछ बनने का
ख्वाब रखते हैं !

...और मुझे उनसे मिलना है
जो जीने के खातिर
सांसों का साथ देते हैं !
मुझे उनसे मत मिलाना
जो सिर्फ सांसों को
जीना समझ लेते हैं !