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अब के बरस / ओम पुरोहित ‘कागद’
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चौथाई टिड्डी
चौथाई फाके का
कछु साहूकार का
कुछ पटवारी का
अब के कर्ज चुकाना है
बिरखा हो तो
लिखियो काका
अब के जल्दी आना है ।