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भूख है यहां भी / ओम पुरोहित ‘कागद’

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अकाल है
नहीं है आस जीवन की
पलायन कर गया है
समूचा गांव ।

मोर
आज भी बैठा है
ठूंठ खेजड़े पर
छिपकली भी रेंगती है
दीवारों पर
और
वैसे ही उड़-उड़ आती है
चिड़िया कुएं की पाळ पर ।

भूख यहां भी है
है मगर देखने की
एक आदम चेहरा ।