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ओ दम्भी पानी! / ओम पुरोहित ‘कागद’

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तब भी
तू नहीं था
जब
हमें
हमारे पुरखों ने
सौंपी थी बागडोर
इस समय की।

पुरखों ने जी थी
हम भी जीएंगे
यह पूरी पीढी़
और
सौंप जाएंगे
आने वाली पीढी़ को
जो देखेगी
तेरा पानी
ओ दम्भी पानी!