भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत के स्वर / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:53, 6 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>रेत जब तक लहराते सागर के नीचे रही तुम्हारी आंखों में चमक रही तु…)
रेत जब तक
लहराते सागर के नीचे रही
तुम्हारी आंखों में चमक रही
तुम्हारी प्यास शांत
और
आत्मा तृप्त रही।
अब जब रेत
लहराते सागर के ठीक ऊपर है
और
जल मुरुथल के नीचे
घुट रहा है,
तुम
उदास क्यों हो
भो़गने दो
जल को घुटन
और मुझे
उन्मुक्तता से रहने का सुख।