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मत हो अधीर / ओम पुरोहित ‘कागद’

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आती है विधना
रात को फुर्सत में
सोनलिया मरुधरा पर
पीसती है
चट्टानों का पीसना।
देखना
आएगी कभी
ले कर पानी
गूंदने यही पीसना।
धोरी!
मत हो अधीर
एक दिन फिर खेलेगा
मरुधरा पर सागर
सुनेगा
अमर होती
तेरी पीर!