भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सालाना मौत / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:28, 9 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी |संग्रह =चुनी हुई कविताएँ / लीलाधर जगूड…)
पिछले साल उसने कहा कि पिछले साल मैं नाबालिग था
इस साल भी वह कह रहा है कि पिछले साल मैं नाबालिग था
हर गए वर्ष में नाबालिग हर नए वर्ष में नासमझ
हर मरने वाले के लिए उसने कहा
बालिग हुआ कि मर गया
कितना बालिग होने के लिए कितना मरने की ज़रूरत है ?