भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जहाँ जाता हूँ वहाँ सपने / नरेन्द्र जैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:53, 10 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं
जहाँ जाता हूँ
सपने बहुत हैं वहाँ
ज़मीन आसमान के बीच
रंग-बिरंगी पतंगों की तरह उड़ते रहते हैं सपने वहाँ
जहाँ मैं जाता हूँ

नीले पंखॊं वाले अश्वों पर बैठे
लगातार दौड़ रहे हैं बच्चे हरे मैदानों में
सारी रात जो टिमटिमाते रहते हैं ख़ामोश
सुबह चिड़िया बनकर चहचहाते हैं वहाँ सितारे
मैं जहाँ जाता हूँ

बनते-बिगड़ते हैं स्वर्ग-नरक वहाँ
आदमी औरत के सपनों में
बोलते रहते हैं कानों में लगातार
अजन्मे शिशु
जहाँ
जाता हूँ
मैं