भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जा मुख देखन को नितही रुख / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 10 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} {{KKCatKavita}} <poem> जा मुख देखन को …)
जा मुख देखन को नितही रुख
दूतिन दासिन को अवरेख्यो ।
मानी मनौतीहू देवन को
'हरिचंद' अनेकन जोतिस लेख्यो ।
सो निधि रूप अचानक ही मग में
जमुना जल जात मैं देख्यो ।
सोक को थोक मिट्यो अब आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।