भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदा चार चवाइन के डर सों / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:14, 10 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} {{KKCatKavita‎}} <poem> सदा चार चवाइन क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदा चार चवाइन के डर सों
नहिं नैनहु साम्हे नचायो करैं ।
निरलज्ज भई हम तो पै डरै
तुमरो न चवाव चलायो करैं ।
'हरिचंद' जू वा बदनामिन के
डर तेरी गलीन न आयो करैं ।
अपनी कुल-कानिहुँ सों बढ़िकै
तुम्हरी कुल-कानि बचाओ करैं ।