भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोऊ कलंकिनि भाखत है कहि / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:30, 10 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} {{KKCatKavita‎}} <poem> कोऊ कलंकिनि भा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोऊ कलंकिनि भाखत है कहि
कामिनिहू कोऊ नाम धरैगो ।
त्रासत हैं घर के सिदरे अब
बाहरीहू तो चवाव करैगो ।
दूतिन की इनकी उनकी
'हरिचंद' सबै सहते ही सरैगो ।
तेरेई हेत सुन्यो न कहा कहा
औरहु का सुनिबो न परैगो ।