भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठहु उठहु प्रभु! त्रिभुवन-राई / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:10, 12 जुलाई 2010 का अवतरण ("उठहु उठहु प्रभु! त्रिभुवन-राई / भारतेंदु हरिश्चंद्र" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
अकाल और उपद्रव के समय गाने को
उठहु उठहु प्रभु! त्रिभुवन-राई ।
कठिन काल में होहु सहाई ।
देहु हमहिं अवलंबन भारी ।
अभय हाथ मम सीस फिराओ ।
मुरझी भुव पर सुख बरसाओ ।
पिता बिपत्ति सों हमहिं बचाओ ।
आइ सरन तुव रहे पुकारी ।