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वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे / ग़ालिब

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रचनाकार: ग़ालिब

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वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे

करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तेरी तरह कोई तेग़-ए-निगाह को आब तो दे

दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हमको
न दे जो बोसा तो मूँह से कहीं जवाब तो दे

पिला दे ओअक से साक़ी जो हमसे नफ़्रत है
प्याला गर नहीं देता न दे, शराब तो दे

"असद" ख़ुशी से मेरे हाथ पाँव फूल गए
कहा जो उस ने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे