भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो मिरा इक महबूब है / अरुणा राय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:23, 16 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणा राय }} {{KKCatKavita‎}} <poem> जो मिरा इक महबूब है । मत पू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए वो क्या खूब है /
आँखें उसकी काली हँसी, दो डग चले बस डूब है /
पकड उसकी सख्त है । पर छूना उसका दूब है /
हैं पाँव उसके चँचल बहुत, रूकें तो पाहन बाख़ूब हैं

जो मिरा इक महबूब है मत पूछिए वो क्या खूब है ....