भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्त एक ही / चंद्र रेखा ढडवाल

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:24, 17 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



पंख सहलाते
पंख नोंचते
सय्यादों का मन / एक ही
एक ही धुन
एक ही प्रालब्ध
और फ़ाख़्ताओं का
अंत भी
एक ही.