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पिताजी-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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आजकल के नौजवान
हमेशा
थमाए रखते हैं
अपनी कलाई
नाडी़ वैद्य के हाथों में !

हमारे वक्त में
ऐसा नहीं था
बला के दिलेर होते थे
हम
जब जवान होते थे !

यह बताते हैं पिताजी
दमें की बलगम को
कंठ में उतार कर !
बडी़ माता के कारण
फ़ूटी आंख से
बहते पानी को पौंछ
घुटनों पर
हथेलियां रख
उठते हुए !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"