भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मां-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:18, 18 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>साठ साल पहले अपने दहेज में आई संदूक को अपनी खाट के नीचे रख कर सोत…)
साठ साल पहले
अपने दहेज में आई
संदूक को
अपनी खाट के नीचे
रख कर सोती है मां !
रेज़गारी रखती है
तार-तार हुई सी
पुरानी गुथली में
फ़िर उसे
सलीके से समेट कर
रख देती है
पुरानी संदूक में !
पौती-पौते संग
खेलते-खेलते
फ़ुरसत में कभी
निकाल कर देती है
अठन्नी
चवन्नी
मीठी गोली
चूसने के लिए !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"