जी हाँ , लिख रहा हूँ / नागार्जुन
रचनाकार: नागार्जुन
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
जी हाँ, लिख रहा हूँ ...
बहुत कुछ ! बहोत बहोत !!
ढ़ेर ढ़ेर सा लिख रहा हूँ !
मगर , आप उसे पढ़ नहीं
पाओगे ... देख नहीं सकोगे
उसे आप !
दरअसल बात यह है कि
इन दिनों अपनी लिखावट
आप भी मैं कहॉ पढ़ पाता हूँ
नियोन-राड पर उभरती पंक्तियों की
तरह वो अगले कि क्षण
गुम हो जाती हैं
चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस
दो-चार सेकेंड तक ही
टिकती है ....
कभी-कभार ही अपनी इस
लिखावट को कागज़ पर
नोट कर पता हूँ
स्पन्दनशील संवेदन की
क्षण-भंगुर लड़ियाँ
सहेजकर उन्हें और तक
पहुँचाना !
बाप रे , कितना मुश्किल है !
आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -
वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे,
मन-ही-मन तो हसोंगे ही,
की भला यह भी कोई
काम हुआ , की अनाप-
शनाप ख़यालों की
महीन लफ्फाजी ही
करता चले कोई -
यह भी कोई काम हुआ भला !