भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखिए हमसे हुआ है यह कुसूर / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:36, 22 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>देखिए हमसे हुआ है यह कुसूर। हर बात में कहा न गया, जी हुजूर! वे रोय…)
देखिए हमसे हुआ है यह कुसूर।
हर बात में कहा न गया, जी हुजूर!
वे रोयें-हंसें तो हम रोयें हंसे,
हमें कभी कबूल नहीं ये दस्तूर!
हम चल कर आयें, आप बात न करें,
हमसे सहा नहीं जाता यह ग़रूर।
साथ बैठकर हिक़ारत से न देखें,
आप बडे होंगे अपने घर जरूर!
आपकी सनक के ख़िलाफ खड़े हुए,
हमें भी आदमी होने का सुरूर!