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हर घर में सडांध देती नाली है / सांवर दइया
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हर घर में सडांध देती नाली है।
बता, यह जिंदगी है या गाली है।
पीक की तरह थूकने पड़े असूल,
पैबंद भरी सत्य की दुशाली है।
बता, कौन-सा मुंह ले अब घर लौटें,
हर चेहरा आज वहां सवाली है।
इस तरह कौन चाहेगा अब जीना,
मर कर जीने की आदत डाली है।
न देना रहा, न लेना बचा बाकी,
बाहर-भीतर सब बिल्कुल ख़ाली है।