भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवाईयान से झाँककर- ब्राउन्सबेरख झील-1 / पुष्पिता
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:51, 1 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता }} <poem> सूरी नाम सुंदरी की आँखों में है नी…)
सूरी नाम सुंदरी की
आँखों में है
नीलम घाटी की
सुनील झील
पारदर्शी और रूपवती ।
ब्रान्सबेरख-झील में
नीलवर्णी आँखों का
नीलगर्मी-सुख ।
झील में
सोया है-स्वर्ण-कुंड
प्रकृति सुंदरी की
नीली-झीनी-भीनी-गीली
उद्निया भीतर
वक्ष में सोया है-हेमकूट
स्वर्ण उपत्यकाएँ
ढूँढने आती है जिसे-स्वर्ण रश्मियाँ
और चंद्र किरणें ।
ब्रॉन्सबेर्रव की नीली-झील
अपनी आँखों की नीलिमा में
छिपाए रखती है-धधकते स्वर्ण के
विलक्षण स्वर्ण अमृत-घट ।
ललचते हैं-पर्यटक
और खो जाना चाहते हैं-ब्रान्सबेरर्व की
नीलिमा के भीतर
लेकिन
कठिन है-
बहुत कठिन है-
बॉक्साईड पर बैठकर
स्वर्ण-नील घाटी के
सौन्दर्य को जीना