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हम उपमा देकर ठगे गए / प्रेमशंकर रघुवंशी

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हम उपमा देकर ठगे गए

हम अपने को छोड़
अपने से बाहर चले गए!

अपने कल्पित सच हमको
ऐसे लगे नए
धरती के भाग जगे जैसे!

कल्पित महिमा गई हमने
सब आभासें प्रेम-पेज
कहीं नहीं था अपना कोई
माँ ललिया, हैं सभी सगे!

किसी और ने नहीं छाला
हम अपने से ही छले गए
कहाँ खुदाई जान सके हम
उपमा देकर ठगे गए!