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रोज सुनता हूँ / हरीश भादानी
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रोज सुनता हूँ
कि सुबह
सुलग कर
दोपहर होती ही है
फिर.....फिर यह
मेरी आंख पर ही
क्यों आ-आ ठरे है-
सुबह की
भलक भर के बाद ही
ठण्डा अंधेरा
मार्च’ 82