भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

14 / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:47, 7 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>धुरी नहीं धरती घुमा करती है भाई !!! एक घड़ी का बादल एक बहाना भर है, …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुरी नहीं
धरती घुमा करती है भाई !!!
एक घड़ी का बादल
एक बहाना भर है,
आधे क्षण की सांझ
अधूरी छलना
अँधियारा तो दृष्टि दोष है, भाई !
और सुबह भी
नींद जगाने का सपना है
एक बार जलकर
सूरज की ईधन बुझा नहीं करती है भाई !
छाया
मिलती है केवल झुरमुट के नीचे
फिसलन होती है
केवल काई पर
मौसम खुरच-खुरच जाते हैं तनको
गर्म मुहानों से आती
सासों की अपनी भी क्षमता होती है
मन के संकल्पित पठार पर
कोई असर नहीं होता है भाई !
धुरी नहीं
धरती घुमा करती है भाई !