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समय की व्यूह रचनाओं में उलझे / जहीर कुरैशी
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कामनाओं की तलवार से
युद्ध करना है संसार से
कम ही खुद्दार होते हैं जो
वो जो दिखते हैं खुद्दार-से
देह भी तंग आने लगी
रोज़ के देह व्यापार से
मान का पान ही है बहुत
जिसको लाया है वो प्यार से
संत भी मुक्त लगते नहीं
आजकल मुक्त बाज़ार से
रोज़ ही दोस्तों की तरह
हम भी मिलते हैं अखबार से
लोग, साकार के बाद ही
मिल सके हैं निराकार से