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जिसपे तेरा इताब हो जाए / अब्दुल मजीम ‘महश्र’
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जिसपे तेरा इताब हो जाए
उसका जीना अज़ाब हो जाए
उनके चेहरे को देख ले जो भी
उसका चेहरा गुलाब हो जाए
उनकी यादें जो दिल में बस जाएँ
ज़िन्दगी लाजवाब हो जाए
या-इलाही तिरी मुहब्बत में
ज़िन्दगानी शराब हो जाए
उनका दिल जीत लो तो ऐ ‘महशर’
हर ख़ता का हिसाब हो जाए