भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब का यही बयान था / रोशन लाल 'रौशन'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 21 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोशन लाल 'रौशन' |संग्रह=समय संवाद करना चाहता है / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब का यही बयान था होगी किसी की लाश
पहचान ही न पाया कोई जि़न्दगी की लाश

बुनते रहे हैं अतलसो-कमख़ाब जिसके हाथ
महरूम एक तारे-कफ़न से उसी की लाश

कोई सुराग कोई निशां तक नहीं मिला
दुख की नदी में डूब गयी यूं खुशी की लाश

हर शख़्स खुद गरज है तो हर बात मस्लेहत
क्या दफन हो चुकी है दिलों में खुदी की लाश

‘रौशन’ पड़े हुए हैं वतन में हम इस तरह
परदेस में हो जैसे किसी अजनबी की लाश