भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शोषकों के बदन दबाते हैं / रोशन लाल 'रौशन'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:09, 21 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोशन लाल 'रौशन' |संग्रह=समय संवाद करना चाहता है / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शोषकों के बदन दबाते हैं
कितनी मेहनत से हम कमाते हैं

फसल वादों की जो उगाते हैं
वोट सबसे अधिक वो पाते हैं

दाल-रोटी का आसरा देकर
ऊँगलियों पर हमें नचाते हैं

आपकी फब्तियाँ भी सुनते हैं
आपको पान भी खिलाते हैं

दूसरों के लिए वो क्या बोलें
शब्द को देर तक चबाते हैं