भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आओ हम धूप-वृक्ष काटें / माहेश्वर तिवारी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:55, 23 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माहेश्वर तिवारी |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> आओ हम धूप-वॄ…)
आओ हम धूप-वॄक्ष काटें ।
इधर-उधर हलकापन बाँटें ।
अमलतास गहराकर फूले
हवा नीमगाछों पर झूले,
चुप हैं गाँव, नगर, आदमी
हमको, तुमको, सबको भूले
हर तरफ़ घिरी-घिरी उदासी
आओ हम मिल-जुल कर छाँटें ।
परछाईं आ कर के सट गई
एक और गोपनता छँट गई,
हल्दी के रँग-भरे कटोरे-
किरन फिर इधर-उधर उलट गई
यह पीलेपन की गहराई
लाल-लाल हाथों से पाटें ।
आओ हम धूप-वृक्ष काटें ।