भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बस स्टाप पर द्रौपदी / अशोक लव
Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 23 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=अशोक लव |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान / अशोक …)
बस - स्टॉप पर खड़ी थी
अधेड़ औरत।
एक के बाद एक बसें आतीं भीड़ भरीं
वह चढ़ नहीं पाती
बस के दरवाज़े से उलटे पाँव लौट आती
कंधे से लटकता झोला संभालती।
' इस बार आई बस में वह ज़रूर चढ़ेगी '
उसने निर्णय कर लिया ,
दरवाज़े तक लटकी भीड़ में डाल दिया उसने हाथ
हैंडल हाथ में नहीं आया
ड्राईवर ने चला दी बस
गिर गई औरत
छिल गई कुहनियाँ
झोले से दूर जा गिरा
टिफ़िन-बॉक्स ।
झटका लगते ही खुल गया
टिफ़िन-बॉक्स
सड़क पर जा गिरीं -
दो सूखी चपातियाँ
एक फांक अचार ,
झट से उठा लीं चपातियाँ
झट से उठा लिया अचार
पोंछकर करने लगी बंद उन्हें
टिफ़िन-बॉक्स में ।
भरे बस-स्टॉप पर
अधेड़ औरत
द्रौपदी बनी खड़ी थी ।