भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन कान सुनेगा / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अपनी कैसे कहूं

यहां कौन कान सुनेगा

आगे एक है पहाड़

फिर दूसरा पहाड़

फिर तीसरा पहाड़

इन्हें घेरे और बांधे हुए

हरे भरे झाड़


इनको छोड़ और कौन

मेरी तान सुनेगा


आगे एक है मनुष्य

फिर दूसरा मनुष्य

फिर तीसरा मनुष्य

इन्हें घेरे और बांधे हुए

दुनिया के मनुष्य


इनको छोड़ मेरा कौन

स्वाभिमान सुनेगा ।

('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से)