Last modified on 28 अगस्त 2010, at 19:31

अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ / ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार <ref>प्रिय से मिलन </ref>होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता

/poem>

शब्दार्थ
<references/>