Last modified on 31 अगस्त 2010, at 12:06

आदमी नहीं है (कविता) / ओम पुरोहित ‘कागद’

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:06, 31 अगस्त 2010 का अवतरण ()

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहुत नाम था मिट्टी का
मिट्टी भिगोई गई
थापी और पकाई गई
मिट्टी ईटं बनी
ईटं का बहुत नाम हुआ
लोग भूल गए मिटटी को।
ईंट से घर बना
घर का बहुत नाम हुआ
ईंट भुला दी गई
घर,
बहुत फैला घर
घर में आया आदमी
अब आदमी
बहुत बड़ा हो गया
आदमी का बहुत नाम है
आदमी के सामने
घर बिल्कुल गौंण है
लेकिन
भुली गई मिटटी
आज भी
घर के नीचे है
भूली गई ईंट
आज भी
घर की दीवारों में हैं
परन्तु
आदमी के भीतर
आदमी नहीं हैं।