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ग़लत समय में सही बयानी / शेरजंग गर्ग

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ग़लत समय में सही बयानी
सब मानी निकले बेमानी

जिसने बोया, उसने काटा
हुई मियाँ यह बात पुरानी

किसको ज़िम्मेदारी सौंपे
हर सूरत जानी पहचानी

कौन बनाए बिगड़ी बातें
सीख गए सब बात बनानी

कुछ ही मूल्य अमूल्य बचे हैं
कौन करे उनकी निगरानी

आन-मान पर जो न्यौछावर
शख्स कहाँ ऐसे लासानी

जीना ही दुश्वार हुआ हौ
मरने में कितनी आसानी

विद्धानों के छक्के छूटे
ग्यान बघार रहे अग्यानी

जबसे हमने बाज़ी हारी
उनको आई शर्त लगानी

कुर्सी-कुर्सी होड़ लगी है
दफ्तर-दफ्तर खीचा तानी

जन-मन-गण उत्पीड़ित पीड़ित
जितनी व्यर्थ गई कुरबानी

देश बड़ा हैं, देश रहेगा
सरकारे तो आनी-जानी

हम न सुनेंगे, हम न कहेंगे
कोउ नृप होय,हमै का हानी?