भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुझ गई रोशनी / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:08, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेरजंग गर्ग |संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरज…)
बुझ गई रोशनी रफ़्ता-रफ़्ता।
खो गई हर खुशी रफ़्ता-रफ़्ता।
ढल गई शोख इश्तहारों में
वक्त की सादगी रफ़्ता-रफ़्ता।
मौत को हर लड़ाई में मारा,
पर हुई खुदखुशी रफ़्ता-रफ़्ता।
बेरुखी, बेकली के जंगल में,
जा फँसा आदमी रफ़्ता-रफ़्ता।
दोस्ती की तरह चुभी दिल में,
दुश्मनों की कमी रफ़्ता-रफ़्ता।